Saturday, April 11, 2015

{ ८८८ } {March 2015}





सन्नाटा ठहरा हुआ अन्तरतम की घाटी में
छन्द नहीं उगते हैं अब आँसुओं की माटी में
माथे की शिकनों में सम्बन्ध विलीन हो रहे
मौन हुई भावों की भाषा प्रश्नों की तैलाटी में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

तैलाटी = बर्र, ततैया

No comments:

Post a Comment