Sunday, April 12, 2015

{ ८९४ } {March 2015}





तुम बजाहिर तो मुस्कुराते हो
और भीतर अगिन अदावत की
दोस्ती भी आजकल हो गई है
जैसे कोई शै हो तिजारत की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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