Thursday, December 18, 2014

{ ८३८ } {Nov 2014}





रोम-रोम में सुलग रही चिंगारी
अब न दिखलायेंगे कोई लाचारी
बहुत पल चुके आस्तीनों में साँप
अब कुचल कर रख देंगें अत्याचारी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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