Sunday, October 5, 2014

{ ७८९ } {July 2014}





मेरा सावन मुझपे पतझड़ सा बरसता है
तनहाइयों का मंजर भी खूब झलकता है
अमावस की ही रातें हैं अपनी ज़िन्दगी में
प्यार का सूरज भी अब कहाँ निकलता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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