Sunday, September 28, 2014

{ ७५९ } {April 2014}






जागो कि सहर करीब है रात ढ़ल चली
सँभलो अब होश में आने का वक्त है
कलियाँ खिल उठीं हवाओं में है सुरूर
गुलशन में अब बहार आने का वक्त है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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