Tuesday, September 30, 2014

{ ७६५ } {May 2014}






दिल में तड़पती है आरजू अब तक
तेरी चाहत की है जुस्तजू अब तक
शामे-वस्ल को गुजरे जमाना बीता
मेरे जेहन में छाई है तू अब तक।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७६४ } {April 2014}






सुख तो एक छलावा भर जैसे
मरुथल में हो आभासित जल
जितना भाग रहे है पीछे उसके
उतना ही वो जाता आगे निकल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७६३ } {April 2014}





लब थरथरा रहे थे साँसें उठती गिरती थीं
पढ़ रहे थे आयतें हम एक दूजे की आँखों से।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, September 28, 2014

{ ७६२ } {April 2014}





ओ. मनमीत, मेरे मन - मन्दिर. में. रह. कर
दूर. न हो जाना. तुम. मुझसे कभी बिछुड़कर
मेरे. दिल की बस. एक तुम ही तो धड़कन हो
आओ प्रीत बढ़ायेंअधरों में अधरों को रखकर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७६१ } {April 2014}






मँझधार है, भँवर है पर पास है किनारा
देश के भविष्य को अब तेरा ही सहारा
तुम चाहे बना दो या तुम चाहे मिटा दो
भारत के जन तू ही सौभाग्य का सितारा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७६० } {April 2014}





दिल. में. नक्श. तुम्हारा. ही. उतारा. है
हर लम्हा. दिल ने तुमको ही पुकारा है
आखिरी. साँस तक जिसे भुला न सकूँ
वो नाम सिर्फ़ तुम्हारा सिर्फ़ तुम्हारा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७५९ } {April 2014}






जागो कि सहर करीब है रात ढ़ल चली
सँभलो अब होश में आने का वक्त है
कलियाँ खिल उठीं हवाओं में है सुरूर
गुलशन में अब बहार आने का वक्त है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, September 27, 2014

{ ७५८ } {April 2014}





बो कर नफ़रतें, नफ़रत मिटा रहे हैं
जन्नत को जैसे जहन्नुम बना रहे है
रोशनी को कैद कर अपनी कफ़स में
कह रहे जमीं से वो अँधेरा हटा रहे हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल