Sunday, September 29, 2013

{ ६८९ } {Sept 2013}




इन हवाओं. को हुआ. क्या नहीं. पत्ते खड़कते हैं
घरों के बीच बन रहे खंड़हर नहीं सीने धड़कते हैं
धुँयें के बीच. रहते. हम पर तपन. से दूरियाँ चाहें
चमकती तड़ित चम-चम नहीं बादल कड़कते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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