Thursday, August 22, 2013

{ ६७३ } {Aug 2013}





रास्ते. भटक. गये हैं. मँजिलों. की चाह में
कसमसा उठी हैं मँजिलें समय की बाँह में
विडम्बना मुहुर्त हो गयी अतृप्त आस की
निष्प्राण. उमँग सो गयी थकी हुई आह में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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