Wednesday, July 31, 2013

{ ६५५ } {July 2013}






किसी की याद दिल को बहुत दुखाती है
तड़पते हुए मौजे-हिज्र में डूबा करता हूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, July 30, 2013

{ ६५४ } {July 2013}





चरित्रहीन हो गई निर्लज्ज रोशनी संयम साधे अँधेरा है
रस्सियों. का साँप ले कर डरा रहा, राजनैतिक सपेरा है
भ्रष्टाचरण चहुँ ओर छाया भयानक काले कथानक सा
देश. की तलैया में, बंशी डाल कर बैठा विदेशी मछेरा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६५३ } {July 2013}





बह. रही हवा. गुमसुम, शबनम. फ़िर रो रही
सन्नाटों. की आवाजों. में भोर. कहीं. खो रही
चिलचिलाती. धूप मे निष्प्राण. खड़ी. प्रतीक्षा
सुधियों की साँसें चाँदनी के तिमिर में रो रहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६५२ } {July 2013}






सब कुछ लुटा दिया अपना मैंनें, अब कहने को कुछ न रहा
होठों पर दर्द उभरा करता, मगर रहा संयमित कुछ न कहा
प्याले में ढ़ाल-ढ़ाल कर पिया किया, पीड़ा की कड़वी हाला
उतरा मन्थन की सरिता में, कुछ इधर बहा कुछ उधर बहा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६५१ } {July 2013}





हुस्नो-जमाल का करम जब से हुआ मुझपर
सारा जमाना ही मुझसे जलने लग गया है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६५० } {July 2013}






जो बीत गया अब उससे द्रोह-मोह क्या करना
क्षण-प्रतिक्षण लगन से ध्वनि-सम है बहना
जाकर कह दो पथ की बाधाओं से हमें न छेड़ें
हम अनन्त पथ के राही अब न हमको थमना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४९ } {July 2013}





सोमरस से लिखा हो जिसे विधि ने
रूप-लावण्य का वह निबन्ध हो तुम
उजले-खिले चाँद की मस्त रातों में
मदमस्त चाँदनी का प्रबन्ध हो तुम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४८ } {July 2013}





सुधियों को सुरभित करता, झूम-झूम कर आया सावन
झँकृत साँसें, महकी मुस्काने, शर्मीले होठों का कम्पन।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४७ } {July 2013}





मेरे.. गीतमयी. हवाओं. की. लय. पर
अपनी. रूह मुझ पर निढ़ाल दी तुमने
दिलो-जाँ. से मुझे अपना प्यार दे कर
मेरे शरीर में जैसे जान डाल दी तुमने।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४६ } {July 2013}





अब. न रह. गया. अदब. से रिश्ता
अब न रह गयी मेहमाननवाज़ी है
अब नहीं. दिखता प्यार-मोहब्बत
हर. तरफ़ फ़ैल. गयी चालबाजी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४५ } {July 2013}





काश वो इस ज़ख्मी दिल के अल्फ़ाज़े-इश्क सुन लेती
तो हम भी मशगूल हो गये होते हुस्न की मोहब्बत में।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४४ } {July 2013}





फ़ैल रहा गहरा धुआँ हम पी रहे कड़वी हवा
जियें कबतक हम पी के केवल दूधिया दवा
फ़ैला हुआ है हर तरफ़ चमकीला भ्रमजाल
जल रही ज़िन्दगी जैसे चूल्हे पर खाली तवा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४३ } {July 2013}





प्यार के तीर का कमाल देखिये जनाब
कि हुस्न खुद उसके करीब आने लगा है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६४२ } {July 2013}





प्राण. वीणा. का सुकोमल. तार. सोता. नहीं है
और हमारे. प्राण. का संगीत. भी रोता. नहीं है
मैं. विरह. में मिलन. की याद. करने. लगा. हूँ
मिलन की मधुभरी स्मृति हृदय खोता नहीं है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, July 29, 2013

{ ६४१ } {July 2013}





फ़र्दे-इश्क पर आँसू के दो बूँद, यादों का गुलदस्ता रखकर
आज बिलख-बिलख कर दे गई, वो गम का नया उपहार।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, July 28, 2013

{ ६४० } {July 2013}





मोहब्बत. का. जलाया. दीप,
गीत. इश्क. का गुनगुनाया है
लबे-खामोश पर आपके तभी
तबस्सुम. लौट. कर. आया है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३९ } {July 2013}





उनके इन्तजार की घड़ियों में वादों के साये में
आह दिल से निकली, आँखों से अश्रु धार छूटी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३८ } {July 2013}





ललक - मचल रहा है आज चाँद भी
चाँदनी भी डोल-मचल न जाये कहीं
तड़प रहा दिल शबो-रोज वस्ल को
बेला मिलन की निकल न जाये कहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३७ } {July 2013}





छाया में रहने का है जिनको अभ्यास
बाँट लिया उन सबने मिलकर आकाश
तपते हुए खलिहानों को मिली यातना
सुविधा संपन्न पा गये सोने का ग्रास।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३६ } {July 2013}





मन में गर सच की इबारत हो तो पढ़ डालो उसे
और गर हर्फ़ गलत हों तो अभी मिटा डालो उसे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३५ } {July 2013}




तुमने कहा जरा ठहरो एक पल
राह तकते-तकते सहर हो गई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{६३४ } {July 2013}





डबडबाये नयन में जल की तरह
एक बिसरी हुई गज़ल की तरह
अब आ भी जाओ बिन तेरे हम
आज भी उदास हैं कल की तरह।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, July 21, 2013

{ ६३३ } {July 2013}





शायद ही कोई ऐसी जगह बची होगी
मेरी कल्पना सपने जहाँ नहीं पहुँचे
मेरे गीत कविता के भेष में चल कर
मेरी आहें आँसूँ कहाँ-कहाँ नहीं पहुँचे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३२ } {July 2013}






जमाना क्या कभी किसी की मोहब्बत से खुश हुआ है
आओ हम अपनी मोहब्बत बेरहम जमाने से छुपा लें।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३१ } {July 2013}





मौत से कर ले तू याराना, गर जन्नत का अरमान है
मँजिल की जानिब चला चल रहगुजर कहाँ अन्जान है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६३० } {July 2013}





तुझे नफ़रत है खार के रुख से
और गुलों से मन का नाता है
आओ उस खार को दुआ दें जो
गुल की आबरू को बचाता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२९ } {July 2013}





खडा हूँ ज़ख्मी ज़िगर लेकर रहगुज़र पे
कोई और हाथ थाम लेता तो सुकूँ होता।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२८ } {July 2013}





हर डगर पर मिलते हैं अपनों से लोग
अपनों में अपनों की किसे पहचान है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२७ } {July 2013}





अब और न प्यासे को यूँ भटकाओ
मेरी आशाओं को अब न ठुकराओ
हृद-वीणा के तारों से उपजे सरगम
आओ कुछ प्रेम-गीत रचो-सुनाओ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, July 20, 2013

{ ६२६ } {July 2013}





तेरी आवार ज़ुल्फ़ों ने मुझको पागल कर दिया
उसपे तिरछी चितवन ने दिलको घायल कर दिया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२५ } {July 2013}





गीत का मणि-कलश दिया तुमने
तार को और भी कस दिया तुमने
इन आँसुओं के नगर में नाहक ही
मुझको ये श्रँगार रस दिया तुमने।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२४ } {July 2013}





वो कह कर गये थे कि सावन में फ़िर मिलेंगें
क्या उनका वादा उन्हे फ़िर याद दिलाया जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ६२३ } {July 2013}





हुआ करती है बारिश हम पे पत्थरों की ही अक्सर
आखिर हमने भी तो पत्थर से ही दिल लगाया है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल