Saturday, April 13, 2013

{ ५३० } {April 2013}





फ़ागुन की सुबह सा कभी झिलमिला गया
सावन की शाम सा... कभी मैं धुँधला गया
आइना-ए-तकदीर पर. जब भी नजर पडी
तनहाई औ’ रुसवाइयों को.. बहुत भा गया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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