Saturday, April 6, 2013

{ ५१३ } {April 2013}





तैर रही नयनों में बिखरी परछाइयाँ
डूब गई सासों में छितरी गहराइयाँ
पीने को आँसू बचे खाने को है गम
सूखे हुए है चमन उजडी अमराइयाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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