Thursday, April 25, 2013

{ ५६५ } {April 2013}





उपवन का आँचल जगह-जगह से नुचा-नुचा
हर क्यारी को ढाँपे बेमौसम फ़ागुनी बहारे हैं
लज्जा ने स्वयं ढाँप लिया अपने नयनों को
लग गयी भँवरों की लम्बी-लम्बी कतारें हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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