Friday, April 12, 2013

{ ५२३ } {April 2013}





आह ! तुम्हारी मस्ताना कातिल अदायें
हुस्न की लहलहाती हुई रंगीन फ़िज़ायें
छू-छू के आती हैं जो तुम्हारे जिस्म को
दिल को बेकाबू कर जाती है वो हवायें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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