Wednesday, March 20, 2013

{ ५०९ } {March 2013}





ये न दोस्ती का रूप है न रँग दुश्मनी का
कोई नहीं जहाँ में जो बन सके किसी का
अब न आँसू ही बचे हैं न रह गई हैं आहें
शायद कोई नही इलाज दद्रे-ज़िन्दगी का।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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