Monday, February 18, 2013

{ ४७८ } {Feb 2013}





जो सहर का रँग, गुलों का निखार था
जो दरिया की मौज चमन का बहार था
उसी ने कर दी वीरान वादियाँ दिल की
जो नजर का सुरूर, दिल का करार था।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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