Monday, January 21, 2013

{ ४६५ } {Jan 2013}





गुजरगाह लम्बी, पथरीली भी है
कहीं गुल तो कहीं बिछे हैं नश्तर
चल रही है उलटी, बेरुखी हवायें
गुमराह होने का सता रहा है डर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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