Tuesday, December 25, 2012

{ ४५० } {Dec 2012}






मँजर जब वो देखा आँखों में नमी हुई
और दाँतों तले हैं उँगलियाँ भी दबी हुई
जिस दिश जिस तरफ़ भी देखा हमने
हर सिम्त दिखे आग ही आग लगी हुई
कहने को तो अमन चैन है निज़ाम में
पर दहशत तले हर ज़िन्दगी दबी हुई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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