Saturday, December 22, 2012

{ ४२१ } {Dec 2012}





सच्चाई निर्वासित हो कर अब दर-दर आज भटक रही
आज मंथरा की गति देखो निज कौशल पर मटक रही
तुम्हे अनवरत चाटुकारिता पर अभिमान भले होता हो
देश को अवांछित मेहमानों की आवभगत कसक रही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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