Monday, December 24, 2012

{ ४२७ } {Dec 2012}






ये सृष्टि भी एक काव्य है जिसकी
अपनी गति और लय हुआ करती
टूटती है जब कभी भी यह लय तो
भूमि तल पर प्रलय ही हुआ करती।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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