Sunday, November 18, 2012

{ ४०४ } {Nov 2012}





लफ़्ज़ मेरे जुबाँ पे आते-आते
जाने क्यों हैं रुक-रुक से जाते
जब इसके रिश्ते तुमसे हैं गहरे
मौन मधुर स्वर ये किसे सुनाते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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