Sunday, November 18, 2012

{ ४०६ } {Nov 2012}





जाग उठी मन की तरुणाई
अब न कटे ये दूरी तनहाई
बाहों में तुम मुझको भर लो
महक उठी है सारी अमराई।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०५ } {Nov 2012}






संत सुख को भी नहीं समझते हैं
और दुख को भी नहीं समझते हैं
इस जग ने समझा कुछ उन्हे ही
जो जग को कुछ नही समझते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०४ } {Nov 2012}





लफ़्ज़ मेरे जुबाँ पे आते-आते
जाने क्यों हैं रुक-रुक से जाते
जब इसके रिश्ते तुमसे हैं गहरे
मौन मधुर स्वर ये किसे सुनाते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ४०३ } {Nov 2012}






फ़ासलों के इस दौर में बढ रही हैं अब दूरियाँ
वरक भी न भर सके दिल में बसी वो खाइयाँ
संगदिल हैं सभी यहाँ और खून सर्द बर्फ़ सा
प्यासी रह गईं हैं दिल की बेचैन उदासियाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, November 16, 2012

{ ४०२ } {Nov 2012}





जाने कहाँ गया वो जालिम तन्हाई का जहर पिला
हमदम की पा कर एक झलक मन का तार हिला
कैसे बीत गये दिन बचपन के सपने बुनते-बुनते
दिल के तपते सहरा में खुश यादों का फ़ूल खिला।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, November 14, 2012

{ ४०१ } {Nov 2012}





मैं सहारा हूँ आदमियत का
आदमीयत मेरा सहारा है
समाज हो या सिया सत हो
आदमीयत हमारा नारा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, November 12, 2012

{ ४०० } {Nov 2012}





आँखों में आँसू लेकर रातें गुजारते हैं
सपनों में अब भी तुमकोपुकारते हैं
कभी सोचूँ तुमको पा लेंगें एक दिन
कभी अपनी भूलों को खुद सुधारते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ ३९९ } {Nov 2012}





चाँद सा कभी तुम्हारा चेहरा लगे
कभी चाँद से भी दाग गहरा लगे
कभी गम से घिरे बादलों में मुझे
दर्द का बहता आँसू सुनहरा लगे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३९८ } {Nov 2012}





जाने क्या मन कहने को तडपा करता है
तेरी यादों में जाने क्यों भटका करता है
अपनी आँखों में ही छुपा रखा है तुमको
बन्द पलकों मे दिल सिसका करता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


{ ३९७ } {Nov 2012}





तुम बिन सब सूना-सूना, लफ़्ज़ भी हैं बिखरे-बिखरे
लाओ कोई प्यार का मरहम, जख्म भी हैं उभरे-उभरे
तेरे प्यार की मधुर धुन को, हम कब से तरस रहे हैं
मधुर गीत बना उनको, जो पल साथ-साथ हैं गुजरे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, November 11, 2012

{ ३९६ } {Nov 2012}





मँजिलें भी ले रहीं हैं अब गजब का इम्तिहाँ
बेल-बूटे-शजर भी न छोडे रास्ते के दर्मियाँ
दिलों के राज भी अब कैद सी महसूस करते
खनक रही हैं इस लिये लबों की खामोंशियाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३९५ } {Nov 2012}





तन के बहुत हैं उजले-उजले
मन के उतने ही काले-काले
परख लो इनको अभ भी तुम
दिखने में लगते भोले-भाले।।

-- गोपाल कॄष्ण शुक्ल

Sunday, November 4, 2012

{ ३९४ } {Nov 2012}





तुम न आकाश के कुसुम होते
यों न सपनों से कहीं गुम होते
चाँदनी रात और घोर सन्नाटा
काश कि मेरे करीब तुम होते।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३९३ } {Nov 2012}





क्यों इश्क का दिल पर मेरे तीर चलाया
हम रह गये प्यासे ही तूने जहर पिलाया
छेड दी फ़िर तूने भूली हुई यादों की धुन
क्यों दिल के सोये हुए जख्मो को जगाया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३९२ } {Nov 2012}





कटती शाख पर परिंदों का डेरा हो
बीते सिर्फ़ आधी रात औ’ सबेरा हो
हादसों का अजीब सा मंजर होगा
जो जलते चिरागों के नीचे अँधेरा हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३९१ } {Nov 2012}





इरादे थे क्या-क्या और क्या कर चले
हम खुद से खुद ही को जुदा कर चले
रह न गयी जिनसे रहबरी की उम्मीद
उसी बेवफ़ा से ही हम वफ़ा कर चले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, November 3, 2012

{ ३९० } {Nov 2012}





तसव्वुर में वो ही नक्श उभर आया है
अब्र-ए-बाराँ में एक चाँद नजर आया है
दरिया की लहरों पे थिरके अक्स उसका
हर जगह उसका ही नूर नजर आया है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३८९ } {Nov 2012}





आग सी जल रही है दिन-रात आँखों में
तडपते हुए गुजरती है हर रात आँखों में
सुकूँ के दो-चार पल मिल जायें दिल को
थम जाये आँसुओं की बरसात आँखों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३८८ } {Nov 2012}





जाने कहाँ गईं रूठ कर वो चाँदनी रातें
वो रँगीन बहारें, वो मोहब्बत की रातें
गर होती रही ऐसी साजिशों पे साजिशें
कैसे बनेगी हकीकत ये ख्वाबों की रातें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३८७ } {Nov 2012}





मैंने जो महसूस किया तन्हाई में
साँस-साँस झलक रहा है मेरा दर्द
भटके बचपन अब भी गलियों में
जाने क्यूँ हुआ दिल आवारा-गर्द।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, November 2, 2012

{ ३८६ } {Nov 2012}





कर दे कुर्बान अपनी खुशियाँ किसी की खातिर
ख्वाहिश करे अपनी खुशियाँ किसी की खातिर
जहाँ में ऐसे हमसफ़र अब बहुत कम मिलते हैं
कयामत तक दे जाये जो साथ किसी की खातिर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल