Wednesday, September 26, 2012

{ ३५१ } {Sept 2012}






अपनी यादों के रँग उडा कर तनहा हूँ
बस्ती से अपनी दूए आ कर तनहा हूँ
हर तरफ़ देखा कोई नहीं है मेरे जैसा
हर ओर अपने भीड सजा कर तनहा हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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