Sunday, September 9, 2012

{ ३४२ } {Sept 2012}






यह केवल मेरी व्यथा नही जो मैं गाता हूँ
जग का रुदन छुपा है मुझमे वो दिखलाता हूँ
वन-गिरि-पर्वत का नहीं, मैं धरती का हूँ वासी
मानुष जीवन की परतों में उलझा जाता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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