Friday, August 24, 2012

{ ३२१ } {Aug 2012}






मैं बहुत बेचैन, मन मेरा कहीं लगता नहीं
नाम है मेरा मुसाफ़िर जो कहीं रुकता नहीं
चल रहा निरंतर पर गुम हो गई है मंजिल
राह पर कहीं दिखता दिया कोई जलता नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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