Saturday, August 25, 2012

{ ३२४ } {Aug 2012}





चाँद जब-जब झाँकता बरखा के बादलों से लजाकर
सोंधी माटी से सुवासित पवन भी चलती इठलाकर
सँग इस पवन के डोलते वृक्ष, प्यार की बाहें बढाते
याद आ जाती प्रिये की, प्राण मे क्या-क्या जगा कर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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