Monday, August 27, 2012

{ ३२६ } {Aug 2012}






मेरे हौसलों के फ़रेब भी कम न हुए
और दूर वे मोहब्बत के भरम न हुए
उसकी नजर में कोई भी समाता है
तो हूक उठती, हाय क्यों हम न हुए।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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