Friday, August 31, 2012

{ ३३८ } {Aug 2012}





अब न वह रँग है न रौनक है
अब न वह भीडाभाड यारों की
मेरे सपनों का शहर, अब जैसे
एक बस्ती हो गम के मारों की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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