Friday, August 31, 2012

{ ३३८ } {Aug 2012}





अब न वह रँग है न रौनक है
अब न वह भीडाभाड यारों की
मेरे सपनों का शहर, अब जैसे
एक बस्ती हो गम के मारों की।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३७ } {Aug 2012}





प्यार का इंकलाब लिखता हूँ
कल्पना का गुलाब लिखता हूँ
बैठ कर किसी अँधेरे कोने में
रोशनी की किताब लिखता हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३६ } {Aug 2012}






आदमियत के कातिलों तक
मानुस की पीर कैसे पहुँचाऊँ
मेरी अँजुरी में नीर गंगा का
कैसे इन मैकशो को बहलाऊँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३५ } {Aug 2012}






जो गुनाहों को राह देता है
कातिलों को पनाह देता है
आज कल वही अँधेरा ही
उजालों को सलाह देता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Tuesday, August 28, 2012

{ ३३४ } {Aug 2012}





प्रेम की मौन खलबली सी तुम
भोली सी भली-भली सी तुम
मेरे जीवन में मुस्कुरा रही हो
कल्पनाकुँज की कली सी तुम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३३ } {Aug 2012}





कागजी इंकलाब निकला तुम्हारा
खुदगर्ज आफ़ताब निकला तुम्हारा
भोली जनता के जलते सवालों का
सिर्फ़ फ़र्जी जवाब निकला तुम्हारा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३२ } {Aug 2012}





सम्मोहन वाली ये चिर-परिचित मुस्कान
गदराए मौसमी पृष्ठॊं से कटीले नयन बान
महकाए गुलशन, मुसकाती मदमाती शाम
लिख जाती पुष्प-पल्लवों पर तेरा ही नाम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३१ } {Aug 2012}





उतर कर जल में केश फ़ैलाये, चली तैरती घिरी घटायें
हर एक छवि पर तुल जायें, कवियों की सौ-सौ उपमायें
ऐसे ही अवसर पर अक्सर ही दबा दर्द उभरा करता है
और भरा करता है भावों के स्वर में गीतों की श्रँखलायें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३३० } {Aug 2012}





रस की तरंग जैसे है पायल में
रोशनी की लकीर है काजल में
मेरे आँगन में आज तुम जैसे
चाँदनी मुफ़लिसी के आँचल में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, August 27, 2012

{ ३२९ } {Aug 2012}





जल रहा गुलशन, चमन कसमसा रहा
बागबान की रूह तक सहमी-सहमी है
गुलों की खुश्बुएँ, महक और रौनकें भी
आँसू भरी, खौफ़ज़दा, थहमी-थहमी हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२८ } {Aug 2012}





हर भोर के बाद शाम हो जाये
इस तरह दिन तमाम हो जाये
वैसे छुपा है गम उनका लेकिन
मेरे गीतों से यह आम हो जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२७ } {Aug 2012}





ज़िन्दगी के सवाल अभी बाकी हैं
दिल में मलाल भी अभी बाकी है
कोई रिश्ता नहीं रह गया तुमसे
पर तुम्हारे खयाल अभी बाकी हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२६ } {Aug 2012}






मेरे हौसलों के फ़रेब भी कम न हुए
और दूर वे मोहब्बत के भरम न हुए
उसकी नजर में कोई भी समाता है
तो हूक उठती, हाय क्यों हम न हुए।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, August 25, 2012

{ ३२५ } {Aug 2012}






रंग बदला हुस्न ने तो प्यार की बातें कहाँ
चाँद जब रुसवा हुआ तो चाँदनी रातें कहाँ
गम पीता हूँ अब शराब मे नही वो कुब्बत
वो रवानी वो मस्ती अब वो मुलाकातें कहाँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२४ } {Aug 2012}





चाँद जब-जब झाँकता बरखा के बादलों से लजाकर
सोंधी माटी से सुवासित पवन भी चलती इठलाकर
सँग इस पवन के डोलते वृक्ष, प्यार की बाहें बढाते
याद आ जाती प्रिये की, प्राण मे क्या-क्या जगा कर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२३ } {Aug 2012}






करवटें बदलती रही रात कितनी बार
पर दुखद स्वप्न का भार न सकी उतार
बहुत ही कठिन थी वह वहशियाना घडी
भूखे दरिन्दो की चोट, वहशियों की मार
अब अपने ही घर मे कैद सोंचती रो रही
क्यों न आया कोई भाई, बन मददगार।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


(गुवाहाटी मे जुलाई २०१२ को सरेआम एक बहन को बेइज्जत किया गया पर कोई "मर्द" आगे आ कर रोकने की हिम्मत न कर सका, द्रवित मन से निकली पँक्तियाँ)

{ ३२२ } {Aug 2012}





ऊब कर जब कभी मुसीबत में
मैं गँध की अमराइयों में उतरा
ज़िन्दगी मुस्कुरा उठी, जब भी
मैं दर्द की गहराइयों मे उतरा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, August 24, 2012

{ ३२१ } {Aug 2012}






मैं बहुत बेचैन, मन मेरा कहीं लगता नहीं
नाम है मेरा मुसाफ़िर जो कहीं रुकता नहीं
चल रहा निरंतर पर गुम हो गई है मंजिल
राह पर कहीं दिखता दिया कोई जलता नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३२० } {Aug 2012}





दर्द दिल में हम कब तक दबाये रहें
दिल में लगी आग कबतक छुपाये रहें
आने लगे उनके हुस्नो-इश्क के सपने
गीत बिरहा के कब तक गुनगुनाये रहें।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, August 20, 2012

{ ३१९ } {Aug 2012}





कल पास रह कर भी दूर थी मैं
अब दूर रह कर भी पास हूँ मैं
कलतक मैं निराशा से घिरी थी
पर आज किसी की आस हूँ मैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३१८ } {Aug 2012}





हमदर्दी, मेंहँदी की प्रीत बन गयी
स्वेद-गँध, जूडे का गीत बन गयी
कैसे बहलाए मन, सिल कर घाव
पीडा, क्षमताओं की मीत बन गयी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३१७ } {Aug 2012}





कोई हमदम नही, दोस्त नही, हमराज नही
अपना गम किससे कहूँ कोई हमनवाज नही
खो गई जाने कहाँ, दिल के धदकनों की सदा
मेरी आवाज मे शामिल, मेरी आवाज नही।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३१६ } {Aug 2012}





मोहब्बत को दिल में जगा के देखो
मुझे अपनी मोहब्बत बना के देखो
हम गुजरे हुए कल के सपने नही है
जरा दिल से दिल को लगा के देखो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, August 19, 2012

{ ३१५ } {Aug 2012}





दिल-ओ-जाँ निसार है तुम पर
मुझको पूरा एतबार है तुम पर
तू बस हाँ कह दे चैन से जी लूँ
मेरा सब्र-ओ-करार है तुम पर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३१४ } {Aug 2012}





मन पंछी उडता फ़िरता कभी गगन-गगन
मन पंछी रमता-बसता कभी वन-उपवन
मन पंछी कब रह पाया मानुष के वश मे
रूठे कभी पिया से चाहे कबी पिया मिलन।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, August 18, 2012

{ ३१३ } {Aug 2012}





इश्क ने भेजे हैं हसीन पयाम आपके लिये
दिल ने भेजे हैं लाखों सलाम आपके लिये
हैरत है देखकर आपकी आँखों की तिश्नगी
आ जाइये हाजिर है ये गुलाम आपके लिये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३१२ } {Aug 2012}





खुदा का नूर हो, दिखती जन्नत की हूर हो
दिल की सदा है यही तुम्ही चश-ए-बद्दूर हो
फ़ीकी हर मिसाल तुम जहाँ में हो बेमिसाल
अब हो रहा एहसास, कि तुम्ही मेरे गुरूर हो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, August 17, 2012

{ ३११ } {Aug 2012}





कुछ तो हो अब ऐसा कि जीने की चाह निकले
कहीं से तो बेपनाह मोहब्बत की राह निकले
इतनी बडी है कायनात, इतना बडा जमाना
शिकस्ता-दिलों का कोई तो खैरख्वाह निकले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३१० } {Aug 2012}





लबों पर शिकवे-गिले सजाते रहे हम
तुम्हारी वफ़ाओं को सहलाते रहे हम
यकीनों की कश्ती भँवर में फ़ँस गई
इसलिये दरिया में डगमगाते रहे हम।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३०९ } {Aug 2012}





मुस्कुराओ कि फिर जिन्दगी लौटे
इस रेत के शहर में कुछ नमी लौटे
बुझ गई आँख, सों गई दहलीज है
डुबो इश्क में फिर जिन्दगी लौटे||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३०८ } {Aug 2012}





समझ आता नहीं सवाल तेरे बेवफा होने का
दिखता नहीं जवाज दिल-शिकस्ता होने का
फिर सोचता हूँ कि तुझे पाया ही कब था मैंने
जो हो मेरे दिल में एहसास तुझे खो देने का||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


जवाज = कारण


{ ३०७ } {Aug 2012}





प्यार की रूह में गजल की तरह
रूप की झील में कमल की तरह
तुम जो होते हो साथ, दिन मेरा
बीत जाता है एक पल की तरह||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३०६ } {Aug 2012}





दर्द के अंजुमन से लाया हूँ
गम के गुलशन से लाया हूँ
एक मुस्कान आपके खातिर
आँसुओं के वतन से लाया हूँ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३०५ } {Aug 2012}





चौदहवीं के चाँद की चाँदनी जब आती
आकर दिल के सुखद दर्द को सहलाती
सावन कि रातों में मेघों की रिमझिम
अंदर-बाहर, तपन-जलन भर जाति||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल