Wednesday, March 7, 2012

{ २०५ } {March 2012}





किस मधुशाला से पीकर आई हो तुम मदिरा
क्यों न गीत बने तेरे मादक-नयन भरे मदिरा
मस्ती में झूम-झूम जाता देखो मेरा तन-मन
उफ़नाता यौवन तेरा छलके जैसे गागर-मदिरा ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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