Wednesday, December 21, 2011

{ १०७ } {Dec 2011}






मन अशांत, जग अशांत, अशांत है ब्रह्मांड
जित देखो उत ही हो रहे शर्मनाक से कांड
मन का धीरज डोल गया होता नही बर्दाश्त
रे मनुज कुछ सुकर्म करो हो शांत ब्रह्माण्ड ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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