Sunday, November 13, 2011

{ ८० } {Nov 2011}







एक मुफ़लिस का नाम हो जाता
शायरी को नई हयात मिल जाती
काश ! इन जलते हुए खयालों को
तेरी ज़ुल्फ़ों की रात मिल जाती ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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