Wednesday, October 19, 2011

{ ४० } {Oct 2011}







इसकदर बैरभाव बढ़ गया आपस में
रस न रह गया अब किसी भी रस में
यह दुनिया हो गयी आग का चक्रव्यूह
न मौत बस में है, न जिन्दगी बस में ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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