Friday, October 21, 2011

{ ६२ } {Oct 2011}






बढती उम्र का ही तो खेल है सारा
इस पड़ाव में दोष अपने पढ़ता हूँ
उन ख़्वाबों को मैं ढूँढता हूँ रातों में
जिन ख़्वाबों को दिन में गढता हूँ ||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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